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प्रत्यावर्ती धारा का दिष्ट धारा में परिवर्तन व इनवर्टर (Conversion from AC To DC and Invertor)

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प्रत्यावर्ती धारा का दिष्ट धारा में परिवर्तन व इनवर्टर (Conversion from AC To DC and Invertor सामान्यतया जनन, ट्रांसमिशन व वितरण में AC का सबसे अधिक उपयोग है इसके कई कारण हैं परन्तु फिर भी कुछ विशेष कार्यों में DC की आवश्यकता पडती है, AC को DC में परिवर्तित करना कनवर्सन कहलाता है। कुछ विशेष कार्य जिनमें DC की आवश्यकता पडती है वह निम्नलिखित है- 1. बैट्री का आवेशन (Charging of Batteries) 2. विद्युत लेपन व परिष्करण जैसे रासायनिक क्रियायें । 3. इलैक्ट्रोनिक उपकरणों की पावर सप्लाई इत्यादि ।  कुछ विशेष कार्य हैं जिनमें DC अधिक लाभदायक है वो निम्नलिखित है- (a) ट्रैक्सन (b) टेलीफोन, रिले व टाइमर स्विच के उपयोग (c) चाल नियन्त्रण में DC मोटरें अधिक दक्ष होती हैं इसलिए जहाँ पर चाल का नियन्त्रण आवश्यक होता है वहाँ DC मोटरों के लिए DC सप्लाई की आवश्यकता पडती है। निम्नलिखित विधियों से AC को DC में परिवर्तित किया ता सकता है। ( i) मोटर जनित्र सेट  (ii) रोटरी कनर्वटर (iii) मरकरी आर्क रैक्टीफायर  (iv) मैटल रैक्टीफायर  (v) अर्द्ध चालक डायोड और SCR उपरोक्त विधियों में रोटरी कनवर्टर, मरक...

व्यावसायिक व औद्योगिक वायरिंग

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व्यावसायिकवऔद्योगिक   वायरिंग (Commercial and Industrial Wiring) कन्डयूट वायरिंग प्रणालियां :- इस प्रणाली को दो भागों में बांटा गया है, जो इस प्रकार है :-  (1) सतही कन्डयूट वायरिंग  (2) कन्सील्ड कन्डयूट वायरिंग (a) सतही कन्डयुट (Surface Conduit Wiring) :- यह प्रणाली निम्न व मध्यम वोल्टता वाली वायरिंग अधिष्ठापन में प्रयोग की जाती है। इसमें अधिकतर लोहे के कन्डयूट में P.V.C. केबल का उपयोग किया जाता है। इसका उपयोग अधिकतर कार्यशालाओं में किया जाता है, क्योंकि लोह कन्डयूट यान्त्रिक सुरक्षा प्रदान करता है। स्थान विशेष पर इस प्रकार की वायरिंग के लिए सर्वप्रथम ले आऊट बना कर सामान की मात्रा का अनुमान लगाया जाता है और आवश्यकता अनुसार लोह के कन्डयूट के टुकडे जिनमें जंक्शन बाक्स में कसने के लिए चूड़ी कटी होती हैं, लकडी की पट्टियों द्वारा दीवार पर सेडल द्वारा कसे जाते हैं और आवश्यकता अनुसार शेष जंक्शन इत्यादि लगा कर कन्डयूट में तारों को स्टील तार जिसे फिश तार (Fish Wire) कहते हैं, की सहायता से आवश्यक तारों को खींचा जाता है। कन्डयूट का आकार इसमें डलने वाली तारों की संख्या अनुसार ...

विद्युत शक्ति का संचारण

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  विद्युत शक्ति का संचारण (Transmission of Electrical Power) विद्युत शक्ति को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने के लिये अर्थात् संचारण और वितरण की मूलतः दो विधियाँ हैं- (1) प्रत्यावर्ती धारा प्रणाली (AC system) (2) दिष्ट धारा प्रणाली (DC system) (1) प्रत्यावर्ती धारा प्रणाली की विशेषतायें- विद्युत ऊर्जा का अधिकतम भाग AC में ही संचारण व वितरण किया जाता है। AC प्रणाली की निम्नलिखित विशेषतायें हैं- (i) प्रत्यावर्ती धारा प्रदाय को 33 kv तक की उच्च वोल्टता में पैदा किया जा सकता है जबकि DC प्रदाय को उच्च वोल्टता में जनेरेट करना सरल नहीं है। (ii) AC मशीनें DC मशीनों की अपेक्षा बनावट में सरल, सस्ती व टिकाऊ होती है। (iii) AC में वोल्टता को ट्रांसफॉर्मर द्वारा सरलता से उच्च व निम्न कर सकते हैं जबकि DC में ऐसा सम्भव नहीं है। प्रत्यावर्ती धारा के दोष- । अतः इस प्रणाली में ताँबा या एल्यूमीनियम की बचत हो सकती है। 3. डी.सी. में त्वाचिक प्रभाव (skin effect) नहीं होता अत: चालक का सम्पूर्ण अनुप्रस्थ क्षेत्र उपयोग होता है। 4. डी.सी. प्रणाली में प्रेरकत्व धारित्र व कला विस्थापन समस्यानहीं होती 5. डी...

विद्युत उपसाधन

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विद्युत उपसाधन मानव जीवन को सरल व आरामदायक बनाने में विद्युत का योगदान आज के युग में किसी से भी छुपा नहीं है। प्रतिदिन मनुष्य अनेक प्रकार के विद्युत उपकरणों का उपयोग करता है। इस अध्याय में प्रतिदिन कार्य में आने वाले उपसाधनों का वर्णन किया जा रहा है। उष्मा उत्पन्न करने वाले उपसाधन (Heating Appliances) : जूल के नियमानुसार जिस चालक में धारा प्रवाहित होती है उसमें उष्मा भी उत्पन्न होती है। यह उत्पन्न उष्मा Hal2Rt होती है। अतः समीकरण में ध्यान देने से मालूम होता है कि यदि किसी चालक का प्रतिरोध अधिक होगा तो उसमें उष्मा उत्पन्न होगी। इसलिए कुछ विशेष उपसाधनों में जिनमें उष्मक घटक (Heating Element) प्रयोग किया जाता है। उसका प्रतिरोध चालक तारों की अपेक्षा अधिक होता है। अतः इस उद्देश्य के लिए निम्न प्रकार के उष्मक पदार्थ प्रयोग किए जाते हैं। केन्थाल (Kanthal ) : यह क्रोमियम, निकल व लोहे की मिश्र धातु होती है। जो विभिन्न अनुपात में मिलाकर विभिन्न उद्देश्यों के लिए तैयार की जाती है। इस मिश्र धातु का कार्यकारी उच्चतम तापक्रम 1280°C होता है और प्रतिरोधकता P20 135 cm होती है। गलनांक 1510°C होता है। इ...

अर्द्ध चालक युक्तियों द्वारा मोटर कन्ट्रोल

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  अर्द्ध चालक युक्तियों द्वारा मोटर कन्ट्रोल (Motors control by semiconductor devices) पावर ट्रांजिस्टर (Power Transistor) : पूर्व सेमेस्टर में हम थायरिस्टर के बारे में अध्ययन कर चूके हैं, थायस्टिर की अपेक्षा ट्रॉजिस्टर की स्विचिंग स्पिड अधिक है और स्विचिंग हानियाँ भी कम होती है। थायस्टिर को टर्न ऑफ करवाने के लिए महंगे कम्यूटेशन सर्किट की आवश्यकता पडती है परन्तु ट्रांजिस्टर को आसानी से टर्न ऑफ कम लागत पर कर सकते हैं। चूंकि ट्रांजिस्टर की वोल्टेज व करंट रेटिंग थायस्टिर से कम होती है, इसलिए सामान्यतया ट्रांजिस्टर का उपयोग मध्ययम शक्ति उपयोगों में किया जाता है। शक्ति ट्रांजिस्टर के निम्नलिखित प्रकार है: 1. बाइपोलर जंकशन ट्रांजिस्टर (Bipolar Junction transitor 2. मैटल ऑक्साइड फिल्ड इफैक्ट ट्रांजिस्टर (Metal Oxide field effect transistor (MOSFET)) 3. इन्सुलेटिड गेट बाइपोलर ट्रांजिस्टर (Insulated gate bi- polar transistor (1G BT) 1. बाइपोलर जंक्शन ट्रांजिस्टर (BJT): BJT तीन परत वाली अर्द्ध चालक युक्ति है। यह दो N प्रकार व एक P प्रकार परत हो सकती है तब यह NPN ट्रांजिस्टर कहलाता है, यदि द...

विद्युत अनुरक्षण

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  विद्युत अनुरक्षण (Electrical Maintenance ) परिचय :- किसी मशीन, उपकरण व प्लांट इत्यादि को कम मूल्य से संतोषजनक व दक्षतापूर्वक चलाने के लिये जो व्यवस्था की जाती है यह व्यवस्था अनुरक्षण (Mantenance) कहलाती है। मशीनों के अनुरक्षण होने के पश्चात् भी कुछ विशेष कारणों से क्षति पहुँच जाती है, इस प्रकार की क्षतिग्रस्त मशीन में सुधार कार्य करना पड़ता है, इस प्रकार के सुधार कार्य को मरम्मत (repair) कहते हैं। अनुरक्षण के उद्देश्य : मशीनों में उचित अनुरक्षरण के निम्नलिखित उद्देश्य हैं- 1. उत्पादन (Production) के समय उपयंत्र के खराब होने की सम्भावना कम हो जाती है। 2. अनुरक्षण लागत घटती है। 3. मशीन या उपकरण संतोषजनक व सुरक्षित परिचालन के लिये तैयार रहता है। 4. मशीन खराब होने के बाद भी पुन: शीघ्र ठीक करने में समय कम लगता है। 5. मशीनों व प्लॉट की दक्षता बढ़ती है। 6. उत्पादन बढ़ता है व लागत घटती है। 7. मशीन या उपकरण का अनुरक्षण सही रहने से ऑपरेटर प्रसन्न रहता है। मशीनें लगातार सही प्रकार कार्य करती रहे इनके दक्ष परिचालन के लिये निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिये  : 1. प्रतिदिन मशीनों की...

अपारम्परिक ऊर्जा स्त्रोत (Non-Conventional Energy Sources)

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  • अपारम्परिक ऊर्जा स्त्रोत (Non-Conventional Energy Sources) परिचय (Introduction ) :- संसार में सभी कार्य ऊर्जा द्वारा ही सम्पादित होते हैं। प्रकृति ने ब्रह्माण्ड में अनेक प्रकार की ऊर्जा स्थापित की है, इन ऊर्जा का ज्ञान प्राप्त करके कुछ प्रकार से मनुष्य ने उपयोग करना सीख लिया है। इस प्रकार की ऊर्जा प्राथमिक ऊर्जा (Primary Energy) कहलाती है जैसे सूर्य से प्राप्त ऊर्जा और अग्नि से प्राप्त ऊर्जा । समय-समय पर मनुष्य ने इस प्रकार की ऊर्जा का उपयोग अनेक प्रकार से किया। प्राकृतिक ऊर्जाओं को अन्य विशिष्ट विधियों द्वारा किया गया जैसे जैविकीय ऊर्जा (Biomas Energy), सौर ऊर्जा (Solar Energy), पवन ऊर्जा, भूतापीय ऊर्जा इत्यादि ये गैर परम्परागत ऊर्जा स्त्रोत कहलाते है, ये ऊर्जा पर्यावरण दृष्टि से भी लाभकारी है। जो ऊर्जा कोयला, तेल, प्राकृतिक गैस, पानी व परमाणु ईंधन से प्राप्त की जाती है ये ऊर्जायें परम्परागत ऊर्जा स्त्रोत (Conventional Energy Sources) कहलाती है। सौर ऊर्जा (Solar Energy ): प्राकृतिक ऊर्जा का सबसे बडा स्त्रोत सूर्य है। सूर्य से विकरित ऊर्जा विभिन्न ग्रहों और उपग्रहों को प्रकाश व...