अर्द्ध चालक युक्तियों द्वारा मोटर कन्ट्रोल
अर्द्ध चालक युक्तियों द्वारा मोटर कन्ट्रोल (Motors control by semiconductor devices)
पावर ट्रांजिस्टर (Power Transistor): पूर्व सेमेस्टर में हम थायरिस्टर के बारे में अध्ययन कर चूके हैं, थायस्टिर की अपेक्षा ट्रॉजिस्टर की स्विचिंग स्पिड अधिक है और स्विचिंग हानियाँ भी कम होती है। थायस्टिर को टर्न ऑफ करवाने के लिए महंगे कम्यूटेशन सर्किट की आवश्यकता पडती है परन्तु ट्रांजिस्टर को आसानी से टर्न ऑफ कम लागत पर कर सकते हैं।
चूंकि ट्रांजिस्टर की वोल्टेज व करंट रेटिंग थायस्टिर से कम होती है, इसलिए सामान्यतया ट्रांजिस्टर का उपयोग मध्ययम शक्ति उपयोगों में किया जाता है।
शक्ति ट्रांजिस्टर के निम्नलिखित प्रकार है:
1. बाइपोलर जंकशन ट्रांजिस्टर (Bipolar Junction transitor
2. मैटल ऑक्साइड फिल्ड इफैक्ट ट्रांजिस्टर (Metal Oxide field effect transistor (MOSFET))
3. इन्सुलेटिड गेट बाइपोलर ट्रांजिस्टर (Insulated gate bi- polar transistor (1G BT)
1. बाइपोलर जंक्शन ट्रांजिस्टर (BJT): BJT तीन परत वाली अर्द्ध चालक युक्ति है। यह दो N प्रकार व एक P प्रकार परत हो सकती है तब यह NPN ट्रांजिस्टर कहलाता है, यदि दो P प्रकार की परत के बीच एक N प्रकार की परत हो तो PNP ट्रांजिस्टर कहलाता है। चूंकि अर्द्ध चालक में धारा प्रवाह विवर (Holes) या इलैक्ट्रोन के कारण होता है इसलिए यह बाइपोलर युक्ति कहलाता है। ट्रांजिस्टर का एमीटर व बेस टर्मिनल हमेशा फारवर्ड वापस तथा बेस व कलैक्टर जंक्शन रिवर्स बायस होना चाहिये, तभी ट्रांजिस्टर सक्रिय रहकर प्रवर्धन (Amplificasium) कर सकता है।
चित्र 7.1
एक NPN ट्रांजिस्टर के एमीटर में दो क्षेत्र है और PNP प्रकार के ट्रांजिस्टर के एमीटर क्षेत्र में दो P क्षेत्र है। NPN प्रकार के ट्रांजिस्टर के एमीटर तरफ की परत चौडी, आधार (Base) परत सकरी और कलैक्टर तरफ की N परत भी सकंरी (Narrow) होती है और अधिक डोपिंग वाली भी होती है।
BJT के आपरेटिंग क्षेत्र तीन प्रकार के होते है-
(1) सक्रीय क्षेत्र (Active Region)
(2) संतृप्त क्षेत्र (Saturation Region)
(3) कट ऑफ क्षेत्र (Cut off region)
संतृप्त क्षेत्र में आधार धारा का मान इतना अधिक होता है कि कलैक्टर बेस जंक्शन (Jc) और उत्सर्जक आधार जंक्शन (Emitter base junction (Je) फारवर्ड बायस होते हैं।
कट ऑफ क्षेत्र में दोनों संधि [एमीटर बेस सन्धि व कलैक्टर बेस सन्धि] रिवर्स बायस में होते हैं और ट्रांजिस्टर स्विच के रूप में कार्य करता है।
सक्रीय क्षेत्र में एमीटर बेस जंक्शन फारवर्ड बायस व बेस कलैक्टर जंकशन रिवर्स बायस में होता है और यह प्रवर्धक (Ampli- fier) के रूप में कार्य करता है।
BJT के कान्फीग्यूरेशन (Configuration of BJT):
एक BJT को तीन प्रकार से परिपथ में संयोजित किया जा सकता है।
(A) कामन बेस कान्फीग्यूरेशन
(B) कामन एममीटर कान्फीग्यूरेशन
(C) कॉमन कलैक्टर कान्फीग्यूरेशन
सर्वाधिक संयोजित होने वाला कामन एममीटर कान्फीग्रेशनहै। जो कि इस प्रकार है।
CE Configuration : कामन एममीटर कान्फीग्यूरेशन में करंट गेन B = 80 लगभग वोल्टेज गेन = 5000 लगभग
इसलिए करंट गेन व वोल्टेज गेन अधिक होने के कारण शक्तिलाभ (Power Gain) भी अधिक होता है।
कामन एम्मीटर बंध में आधार (Base) व उत्सर्जक (Emit- ter) के बीच इनपुट सप्लाई जोडी जाती है और कलैक्टर व एम्मीटर के बीच आउटपुट जोडी जाती है। इनपुट व आउटपुट के बीच एममीटर कामन होता है इसलिए यह कामन एममीटर परिपथ कहलाता है। निम्न चित्र 7.3 में एक कामन एममीटर कान्फीग्यूरेशन परिपथ दिखाया गया है।
इनपुट परिपथ में बेस करंट । प्रवाहित होती है और आउटपुट सर्किट में कलैक्टर करंट । प्रवाहित होती है, इस प्रकार का परिपथ शक्ति प्रवर्धक परिपथों (Power amplifer circuits) में उपयोग किया जाता है क्योंकि इसका करंट, वोल्टेज व पावर गेन उच्च होता है। इनपुट व आउटपुट प्रतिबाधा (Impedance) मध्यम होती है। शक्ति लाभ (Power gain) = 80 × 5000= 400000 (लगभग)
यह लाभ बहुत उच्च लाभ की श्रेणी में आता है।
शक्ति ट्रांजिस्टर के अभिलक्षण (Characteristics of power transistor)
इनपुट अभिलक्षण (Input Characteristics): उपरोक्त चित्र 73 के परिपथ अनुसार ट्रांजिस्टर को परिपथ में जोडने पर कामन एममीटर कान्फीग्यूरेशन, फारवर्ड बायस PN जंक्शन डायोड की तरह केहै ।
चित्र 7.4
इस संयोजन में इनपुट प्रतिरोध CB कान्फीग्यूरेशन की अपेक्षा
अधिक होता है।
जब कलैक्टर व एममीटर के बीच वोल्टेज V... का मान उच्च रखा जाता है तो कलैक्टर जंक्शन को रिवर्स बायस में डिप्लेशन क्षेत्र बेस क्षेत्र को दबा देता है, जिसके कारण बेस क्षेत्र की प्रभाविक चौडाई कम हो जाती है, परिणामस्वरूप एममीटर क्षेत्र से अधिक आवेश वाहक कलैक्टर बेस जंक्शन की ओर प्रवाहित होते हैं और निम्न मात्रा में बेस की ओर प्रवाहित होते हैं।
निर्गत अभिलक्षण (Output Characteristics):
(i) यदि बेस करंट को शून्य रखकर केबल V को बढाया जाये तो कलक्टर करंट I बहुत न्यून मात्रा में बढकर स्थिर हो जाता है। I. धारा स्थिर रहने पर यह क्षेत्र कट ऑफ क्षेत्र कहलाता है, इसका अर्थ यह हुआ कि ट्रांजिस्टर इस न्यून वोल्टेज से उच्च वोल्टता पर आपरेट होता है।
(ii) अब यदि बेस धारा Ib, का मान बढाकर Vf में वृद्धि की खाये तो 1. का मान बढकर फिर स्थिर हो जाता है अतः वक्र थोडा उठवा होता है, जब कलक्टर करंट I, V. से स्वतन्त्र हो जाती है परन्तु I b पर निर्भर रहती है यह क्षेत्र सक्रिय क्षेत्र (Active Region) कहलाता है । (iii) जब VCE का मान थोडा सा बढाने पर कलैक्टर करंट रेखीय रूप में बढता है अतः वक्र का रेखीय भाग (Linear portion) संतृप्त क्षेत्र (Saturated region) कहलाता है।
(iv) यदि Vc का मान काफी उच्च कर दिया जाये तो उस समय कलैक्टर करंट तेजी से बढता है और ट्रांजिस्टर में ब्रेक डाउन हो जाता है और ट्रांजिस्टर खराब हो जाता है, इस प्रकार का ब्रेक डाउन एवलॉन्च ब्रेक डाउन कहलाता है।
उपयोगः
1. अधिकतर पावर ट्रांजिस्टर 120 वोल्ट तक, 500 वोल्ट तक व 1200 वोल्ट तक की क्षमता में तीन श्रेणीयों में उपलब्ध है। 120 V वाले पावर ट्रांजिस्टर अधिकतम 1200 A तक की धारा वहन कर सकतेहै ।
2. निम्न स्पिड पर स्विचिंग का कार्य कर सकते है। 3. इनका उपयोग बैट्री द्वारा परिचालित इनवर्टर, चोपर परिपथ में करते हैं जो 500 Hz या कम आवृत्ति पर आपरेट हो सकते हैं। 4.230 V पर मोटर कन्ट्रोल परिपथों में उपयोग किये जाते हैं। 5. निम्न धारा क्षमता 5A से कम धारा के लिए ये युक्तियों 480V की लाइन पर उपयोग की जा सकती है।
पॉवर ट्रांजिस्टर के पैकेज (Package of power tran-sistor
(i) निम्न शक्ति के ट्रांजिस्टर धातु या प्लास्टिक के छोटे आवरण में उपलब्ध है। जैसा कि निम्न चित्र 7.6 में दिखाया गया है।
(ii) मध्यम शक्ति ट्रांजिस्टर माउटिंग स्टड प्रकार के होते जिनके साथ हीट सिंक जुडी होती है। चित्र 7.7 में इस प्रकार के ट्रांजिस्टर दिखाये गये हैं। सामान्यतया स्टड के साथ जुडी हीट सौंक पावर ट्रांजिस्टर का कलैक्टर टर्मिनल होता है।
(iii) चित्र 7.8 में उच्च शक्ति क्षमता के पावर ट्रांजिस्टर केपैकेज दिखाये गये हैं।
(iv) चित्र 7.9 में पावर ट्राजिस्टर के पिन को पहचान व संरचदर्शायी गई है।
(ii) अब यदि बेस धारा Ib, का मान बढाकर Vf में वृद्धि की खाये तो 1. का मान बढकर फिर स्थिर हो जाता है अतः वक्र थोडा उठवा होता है, जब कलक्टर करंट I, V. से स्वतन्त्र हो जाती है परन्तु I b पर निर्भर रहती है यह क्षेत्र सक्रिय क्षेत्र (Active Region) कहलाता है
। (iii) जब VCE का मान थोडा सा बढाने पर कलैक्टर करंट रेखीय रूप में बढता है अतः वक्र का रेखीय भाग (Linear portion) संतृप्त क्षेत्र (Saturated region) कहलाता है।
(iv) यदि Vc का मान काफी उच्च कर दिया जाये तो उससमय कलैक्टर करंट तेजी से बढता है और ट्रांजिस्टर में ब्रेक डाउन हो जाता है और ट्रांजिस्टर खराब हो जाता है, इस प्रकार का ब्रेक डाउन एवलॉन्च ब्रेक डाउन कहलाता है।
उपयोगः
1. अधिकतर पावर ट्रांजिस्टर 120 वोल्ट तक, 500 वोल्ट तक व 1200 वोल्ट तक की क्षमता में तीन श्रेणीयों में उपलब्ध है। 120 V वाले पावर ट्रांजिस्टर अधिकतम 1200 A तक की धारा वहन कर सकतेहै ।
2. निम्न स्पिड पर स्विचिंग का कार्य कर सकते है। 3. इनका उपयोग बैट्री द्वारा परिचालित इनवर्टर, चोपर परिपथ में करते हैं जो 500 Hz या कम आवृत्ति पर आपरेट हो सकते हैं। 4.230 V पर मोटर कन्ट्रोल परिपथों में उपयोग किये जाते हैं। 5. निम्न धारा क्षमता 5A से कम धारा के लिए ये युक्तियों 480V की लाइन पर उपयोग की जा सकती है।
पॉवर ट्रांजिस्टर के पैकेज (Package of power transistor):-
(i) निम्न शक्ति के ट्रांजिस्टर धातु या प्लास्टिक के छोटे आवरण में उपलब्ध है। जैसा कि निम्न चित्र 7.6 में दिखाया गया है।
(ii) मध्यम शक्ति ट्रांजिस्टर माउटिंग स्टड प्रकार के होते जिनके साथ हीट सिंक जुडी होती है। चित्र 7.7 में इस प्रकार के ट्रांजिस्टर दिखाये गये हैं। सामान्यतया स्टड के साथ जुडी हीट सौंक पावर ट्रांजिस्टर का कलैक्टर टर्मिनल होता है।
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