विद्युत उपसाधन
विद्युत उपसाधन
मानव जीवन को सरल व आरामदायक बनाने में विद्युत का योगदान आज के युग में किसी से भी छुपा नहीं है। प्रतिदिन मनुष्य अनेक प्रकार के विद्युत उपकरणों का उपयोग करता है। इस अध्याय में प्रतिदिन कार्य में आने वाले उपसाधनों का वर्णन किया जा रहा है।
उष्मा उत्पन्न करने वाले उपसाधन (Heating Appliances)
: जूल के नियमानुसार जिस चालक में धारा प्रवाहित होती है उसमें उष्मा भी उत्पन्न होती है। यह उत्पन्न उष्मा Hal2Rt होती है। अतः समीकरण में ध्यान देने से मालूम होता है कि यदि किसी चालक का प्रतिरोध अधिक होगा तो उसमें उष्मा उत्पन्न होगी। इसलिए कुछ विशेष उपसाधनों में जिनमें उष्मक घटक (Heating Element) प्रयोग किया जाता है। उसका प्रतिरोध चालक तारों की अपेक्षा अधिक होता है। अतः इस उद्देश्य के लिए निम्न प्रकार के उष्मक पदार्थ प्रयोग किए जाते हैं।
केन्थाल (Kanthal) : यह क्रोमियम, निकल व लोहे की मिश्र धातु होती है। जो विभिन्न अनुपात में मिलाकर विभिन्न उद्देश्यों के लिए तैयार की जाती है। इस मिश्र धातु का कार्यकारी उच्चतम तापक्रम 1280°C होता है और प्रतिरोधकता P20 135 cm होती है। गलनांक 1510°C होता है। इस मिश्र धातु का उपयोग बड़ी भट्टियों में किया जाता है जहाँ पर स्टेनलेस स्टील को मृदु किया जाता है।
नाइक्रोम (Nichrome) : इस मिश्र धातु में 80% निकल व 20% क्रोमियम होती है। इसका सुरक्षित उच्चतम तापमान 1150°C होता है। इसकी प्रतिरोधकता P. 10 cm होती है। इस मिश्र धातु का उपयोग घरेलू विद्युत उपसाधनों के उष्मक घटक (Heating element) बनाने में किया जाता है।
उष्मा उत्पन्न करने वाले उपसाधन : किसी भी उष्मक (Heater) में उत्पन्न उष्मा निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करती है
- (अ) धारा का मान,
(ब) उष्मक के घटक (Element) का प्रतिरोध,
(स) समय,
(द) खुले वातावरण में ठण्डा होने की दर,
(य) घटक के फेरों में समीपता,
(र) घटक का आकार ।
उष्मक घटक के प्रकार (Types of Heating Elements) : ये दो प्रकार के होते हैं
(अ) खुले प्रकार
(ब) बंद प्रकार
एक साधारण अंगीठी प्रकार के हीटर में एलीमेन्ट खुले प्रकारका उपयोग किया जाता है परन्तु पानी में डुबोने वाले या विद्युत केतलीके उष्मक बन्द रोधित प्रकार के होते हैं।
विद्युत उपसाधन (Electrical Appliances)
विद्युत उष्मक (Electric Heaters) : इस साधन का उपयोग प्रत्यक्ष उष्मा उत्पन्न करने के लिए किया जाता है। चित्र 2.1 में इस प्रकार के हीटर को दिखाया गया है।
चित्र 2.1
इसके उष्मक घटक में नाइक्रोम तार का उपयोग किया जाता है। इस तार में विशेषता होती है कि उच्च तापक्रम पर भी इसमें ऑक्सीकरण नहीं होता है। इसका उष्मक घटक अग्नि सह मिट्टी में बने हुए खाँचों में फँसा होता है, जिसमें प्रत्येक खाँचे के अन्त में उभरे हुए सिरे होते हैं जो एलीमेंट को बाहर निकलने से रोकते हैं। ये विभिन्न वॉट क्षमता के बनाये जाते हैं। उष्मक प्लेट 25 mm तक की मोटाई में मिलती है। उष्मक घटक कुण्डलित प्रकार का होता है। उष्मक घटक के सिरे अग्नि सह मिट्टी की प्लेट में बने छिद्र में नट बोल्ट कसकर जोड़े जाते हैं। इन नट बोल्ट से ताँबे की तार को पोर्सलीन या काँच के मणियों में डालकर या एसबेस्टस की स्लिव में डालकर हीटर की बॉडी से जुड़े सॉकेट टर्मिनल तक लाया जाता है। हीटर एलीमेन्ट के ऊपर एक लोहे की जाली भी रखी जाती है, जो किसी वस्तु को गर्म करते समय हीटर ऐलीमेन्ट से सम्पर्क होने से बचाती है। हीटर की मरम्मत करते समय निम्नलिखित सावधानियाँ रखनी चाहिए सॉकेट व प्लग की जाँच करें कि इसके टर्मिनल अधिक गर्म होने से जल तो नहीं गये हैं।
केबल की अविच्छिन्नता व विद्युत रोधन की जाँच करें।
• उष्मक घटक की अविच्छिन्नता तथा बॉडी से अर्थ की भी जाँच करें।
यदि उष्मक की प्लेट टूट गई हो तो उसे बदल दें।
उष्मक के विद्युतमय भागों व बॉडी के बीच प्रतिरोध एक मेगा ओह्य से कम नहीं होना चाहिए।
विद्युत इस्त्री (Electric Iron) : इस उपकरण का उपयोग वस्त्रों को इस्त्री करने के लिए किया जाता है। यह तीन प्रकार की होती है- (अ) साधारण विद्युत इस्त्री
(ब) स्वचल विद्युत इस्त्री
(स) भाप विद्युत इस्त्री
साधारण विद्युत इस्त्री : इस इस्त्री में बेस प्लेट क्रोमियम से लेपित होती है और नाइक्रोम तार से बना एक विद्युत उष्मक घटक (Heating element) होता है जो दो अभ्रक की शीट के बीच फिट होता है। उष्मक के ऊपर एस्बसटेस शीट, उसके ऊपर ढलवें लोहे की दाब प्लेट को नट बोल्ट से कसा जाता है। एम्बसटेस शीट उष्मक की उष्मा को ऊपर आने से रोकती है। उष्मक के टर्मिनल इस्त्री के ऊपरी कवर पर लगे साकेट टर्मिनलों से कस दिए जाते हैं और अन्त में ऊपरी कवर को बेस प्लेट से निकले बोल्टों के साथ हैण्डिल सहित कस दिया जाता है !
इन विभिन्न प्रकार के वस्त्रों के लिए विभिन्न तापमान का समंजन थर्मोस्टेट से किया जाता है। चित्र 23 में एक स्वचल विद्युत इस्त्री का बाहरी चित्र दिखाया गया है।
चित्र 2.3
ताप स्थाई (Thermostat) : यह एक प्रकार का स्विच होता है जो उस समय स्वतः ही परिचालित हो जाता है। जब इसके आस- पास उष्मा उत्पन्न होती है। यह इस सिद्धान्त पर कार्य करता है कि विभिन्न प्रकार की धातुओं का प्रसार विभिन्न तापक्रम पर अलग-अलग होता है। उदाहरण के लिए लोहे की अपेक्षा पीतल का ताप प्रसार गुणांक अधिक होता है। इसलिए यदि लोहे व पीतल से बनी एक पत्ती को गर्म किया जाये तो एक निश्चित तापक्रम के बाद यह पत्ती एक तरफ मुड़ने लगेगी। इस सिद्धान्त का उपयोग थर्मोस्टेट के परिचालन में किया जाता है। चित्र 2.4 (a) में दिखाया गया है कि थर्मोस्टेट में दो सम्पर्क बिन्दु होते हैं एक स्थिर सम्पर्क बिन्दू तथा दूसरा चल सम्पर्क बिन्दू। चल सम्पर्क एक द्विधातु पत्ती होती है। यह साधारण ठण्डी अवस्था में चल सम्पर्क पत्ती के साथ मिली रहती है। थर्मोस्टेट उष्मक घटक के साथ श्रेणी में जुड़ा रहता है। यह थर्मोस्टेट इस्त्री के ऊपरी आवरण के अन्दर सोल प्लेट के ऊपर कसा जाता है।
चित्र 2.2 में एक साधारण इस्त्री के भाग दिखाये गये हैं। एक घरेलू साधारण इस्त्री 450 वॉट विद्युत शक्ति खर्च करती है जबकि लाउण्ड्री इस्त्री 1000 से 1500 वॉट तक विद्युत शक्ति खर्च करती है।
(a) गर्म अवस्था में द्विधातु पत्ती का मुड़ जाना
(b) द्विधातु द्वारा नियंत्रण ताप स्थाई
स्वचल विद्युत इस्त्री (Automatic Electric Iron) : साधारण इस्त्री में जो भाग उपयोग में लाये जाते हैं। उन भागों के अतिरिक्त इसमें एक थर्मोस्टेट और उपयोग किया जाता है जो उष्मक के श्रेणी में जोड़ा जाता है। यह थर्मोस्टेट इस्त्री के तापमान को नियन्त्रित करता है जिससे इस्त्री को अधिक गर्म होने से रोका जा सकता है। चूँकि अलग-अलग प्रकार के वस्त्र जैसे सूती वस्त्र व लाइलॉन वस्त्र को इस्त्री करने के लिए अधिक तापमान की आवश्यकता पड़ती है और टेरीलॉन और सिल्क वाले वस्त्र कम तापमान पर इस्त्री हो जाते हैं। इसलिए से इस्त्री की सोल प्लेट गर्म होती है
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