तार, केबल एवं सकेत (Wire, Cable and Symbols )
तार, केबल एवं सकेत (Wire, Cable and Symbols )
तार (Wire) :- एक ऐसा चालक जो धारा वहन कर सकता हो, जिसका व्यास समरूप हो, आकार में वृत्तीय हो और उस पर कोई इन्सुलेशन न चढ़ा हो तार कहलाता है।
केबल (Cable) :- ऐसा चालक जिस पर पी.वी.सी. या रबड़ इत्यादि इन्सुलेशन की परत चढ़ी हो। यह एक चालक भी हो सकता है या सात चालक भी हो सकते हैं। इस प्रकार इन्सुलेशन की परत चढ़े चालक केबल कहलाते हैं।
केबल के भाग (Parts of Cable) :- साधारण केबल के तीन मुख्य भाग होते हैं।
(i) चालक
(ii) इन्सुलेशन परत
(iii) सुरक्षा परत
चालक (Conductor) :- एक ऐसी शुद्ध धातु जो धारा के मार्ग में कम विद्युत प्रतिरोध उत्पन्न करती है चालक कहलाती है। यह चालक पदार्थ ही धारा को एक सिरे से दूसरे सिरे तक प्रवाहित करता है। चूंकि तांबे की चालकता एल्यूमिनियम की अपेक्षा अधिक है फिर भी इसके अधिक मूल्य व कम उपलब्धता के कारण एल्यूमिनियम का उपयोग आजकल अधिक बढ़ गया है क्योंकि भार में कम होने के साथ - साथ एल्यूमिनियम का प्रति किलो ग्राम मूल्य भी तांबे से बहुत कम है। धारा का मान चालक की मोटाई के साईज को तय करता है।
इन्सुलेशन परत (Insulation Covering) :- यह परत धारा को एक निश्चित मार्ग में प्रवाहित होने के लिए बाध्य करती है। इन्सुलेशन पदार्थ का प्रतिरोध इतना होना चाहिए कि यह क्षरण धारा (Leakage current) को रोक सके। ज्यों-ज्यों चालक व अर्थ के बीच वोल्टता का मान बढ़ता है तो इन्सुलेशन की मोटाई भी बढ़ती है। अतः चालक पर चढ़े इन्सुलेशन की मोटाई या पदार्थ की प्रकृति केबल पर लगे वोल्टता के मान से तय की जाती है। केबल के इन्सुलेशन पर वातावरण में उपस्थित आर्द्रता तथा ताप भीबुरा प्रभाव छोड़ते हैं। अतः इससे स्पष्ट होता है कि जहां पर ऐसा वातावरण हो, उसी वातावरण के अनुकूल ही इन्सुलेशन का चयन करना चाहिए।
सुरक्षा परत (Protective Covering) :- केबल को बाहरी यान्त्रिक चोट से बचाने के लिए चालक के ऊपर इन्सुलेशन के बाद लोहे की पत्तियों या तारों से एक परत खोल के रूप में चढ़ाई जाती है, उस पर फिर PVC का इन्सुलेशन चढ़ा दिया जाता है जिससे केबल के चालक भाग इन्सुलेशन सहित सुरक्षित रहते हैं।
केबल की धारा वहन क्षमता तथा फ्यूजिंग कॅरेट (Current Rating and Fusing Current of Cable) :-
जब एक चालक में धारा प्रवाहित होती है तो इसमें उष्मा उत्पन्न होती है। यदि धारा का मान बढ़ता जाए तो उत्पन्न उष्मा भी बढ़ती जाती है। इस कारण केबल का चालक भी पिघल सकता है या चालकों के मध्य इन्सुलेशन भी खराब हो सकता है। चूंकि चालक का प्रतिरोध स्थिर होता है, इसलिए चालक में ताप की वृद्धि को केवल धारा को नियन्त्रित करके ही नियन्त्रित किया जा सकता है (क्योंकि उत्पन्न उष्मा aFRt अतः धारा का वह उच्चतम मान जिसको चालक सुरक्षित वहन कर सके और रूम टेम्प्रेचर पर उसके प्रतिरोध में वृद्धि न हो, यह मान केवल की क्षमता कहलायेगी।
धारा के जिस न्यूनतम मान से चालक पिघलना शुरू हो जात है, वह फ्यूजिंग करंट कहलाता है।
केबल के इन्सुलेशन व चालक की आयु बढ़ाने के लिए चालक में धारा सुरक्षित सीमा से अधिक नहीं प्रवाहित करनी चाहिए।
स्टैंडिंग केबल (Stranded Cable) :-
विद्युत-शक्ति जनन व वितरण शिरोपरी लाइनों व अण्डर ग्राउण्ड केबलों द्वारा किया जाता है। केबल के चालक दो प्रकार के होते हैं। (i) ठोस चालक और
(ii) स्टैंडिड चालक
ठोस चालक केबल में केवल एक चालक होता है। परन्तु इससे चालक में लचक नहीं आती।
चालक में लचक (Flexibility) लाने के लिए एक मोटे चालक की अपेक्षा कई गोल आकार के कम व्यास के तार उपयोग में लाये जाते हैं और इनको थोड़ा-सा रस्सी की तरह लपेट दिया जाता है। इस प्रकार के चालक को स्टैंडिड चालक कहते हैं। केबलों में 3, 7, 13, 19, 29, 37, 61, 91, 127 और 169 चालक प्रयोग किये जाते हैं। इन चालकों की संख्या का निर्धारण इस प्रकार किया जाता है ताकि इनसे चालक को गोल आकार दिया जा सके। आजकल 3/22, 3/20, 7/22 या 7/20 की अपेक्षा मल्टी स्टैंडिड चालक उपयोग में लाए जा रहे हैं और इनका साईज 0.75mm, 1.00mm, 1.5mm, 2.5mm, 4mm और omr में लिया जा रहा है।
वायरिंग स्थापना में केबल का चयन (Selection of Cable for Wiring Installation) :- तार स्थापन में निम्न बिन्दुओं को ध्यान में रखना चाहिए
(i) वातावरण का प्रभाव (Effect of Atmosphere):-
स्थान विशेष के वातावरण का प्रभाव केबल इन्सुलेशन पर नहीं पड़ना चाहिए, उदाहरण के लिए खुले में वेदर प्रूफ केबल उपयोग में लानी चाहिए, क्योंकि ऐसी जगह केबल यदि P.V.C. इन्सुलेटिड केबिल उपयोग में लाई जाए तो P.V.C. धूप में खराब हो जाता है। तेल मिल में ट्रोपोड्योर केबल व रासायनिक उपक्रमों में लेड कवर्ड केबल उपयोग में लानी चाहिए।
(ii) परिपथ में उच्च वोल्टता की सीमा (Maximum Voltage in the Circuit) :- केबल का इन्सुलेशन ग्रेड परिपथ में प्रयुक्त वोल्टता के अनुरूप होना चहिए। घरेलू व व्यावसायिक कार्यों के लिए LT केबल का इन्सुलेशन 1100 वोल्ट पर टेस्ट होना चहिए।
(iii) परिपथ की पूर्ण भार धारा (Full load current of the circuit) :- केबल की धारा वहन करने की सामर्थ्य इतनी होनी चाहिए ताकि यह परिपथ की पूर्ण भार धारा बिना गर्म हुए सहन कर सके। इसके लिए केबिल को साधारण धारा के 1.5 गुणा धारा पर 4 घण्टे तक टेस्ट करना चाहिए। इसके लिए सुरक्षा युक्ति MCB का उपयोग किया जाता है।
चालक के साईज का निर्धारण (To decide the size of the conductor) :-
सर्वप्रथम प्रथम चालक का व्यास मिलीमीटर में माइक्रोमीटर की
nd2 4सहायता से मापें। फिर A = फार्मुला से एक चालक का क्षेत्रफलज्ञात हो जाता है। यदि चालकों की संख्या अधिक है तो जितने चालक हैं उतने से गुणा कर दो। जैसे मल्टीस्ट्रैण्ड केबल में माना लड चालक में 14 स्टैण्ड हैं और प्रत्येक चालक का व्यास
कुल क्षेत्रफल = 14×0.07014=0.99 जो कि 1.0 mm' कहलाता है। परिपथ की साधारण धारा मान से केबल की क्षमता 1.5 गुणा धारा पर टेस्ट करना चाहिए। आगे निम्न तालिका में विभिन्न धारा मान के लिए केबल के साईज का चयन किया जाता है।
क्रिम्पिंग व क्रिम्पिंग टूल (Crimping and Crimping Tool):- किसी लग के साथ केबल के सिरो को सोल्डर या यान्त्रिक विधि से दबा कर टर्मिनल तैयार करना किम्पिंग कहलाता है। लग को मध्य से क्रिम्पिंग टूल से दबाना चाहिए। एक उचित विधी से केबल को क्रिम्प करने की विधि दशाई गई है।
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