अर्थिंग (Earthing)

 


अर्थिंग (Earthing)

 भू-सम्पर्कन (EARTHIG)

(1) विद्युत झटके से बचाव (Safety From Electric Shock):- विद्युत संस्थापन में जब कभी नंगा तार किसी उपकरण जैसे प्रेस, हीटर, विद्युत केटली, कूलर या धातु के स्विच बोर्ड इत्यादि की बॉडी सम्पर्क में आता है तो वह उपकरण अपनी बाडी सहित संजीवित हो जाता है और उपकरण के किसी भाग से पूर्णतया सम्पर्क होने पर मनुष्य को घातक विद्युत झटका लग सकता है और सम्पर्क में आये हुए व्यक्ति की मृत्यु भी उसी समय हो सकती है।

साधारणतया विद्युत झटके का प्रभाव निम्नलिखित बातों पर निर्भर करता है

(i) शरीर में से गुजरने वाली धारा।

(ii) शरीर के किसी महत्वपूर्ण अंग का विद्युत के सम्पर्क में आना। (iii) विद्युत सम्पर्क का समय।

(iv) प्रदाय A.C. या D.C. का प्रभाव

चूंकि मनुष्य शरीर का प्रतिरोध भिन्न-भिन्न व्यक्तियों के लिए भिन्न-भिन्न होता है इसलिए जब शरीर के पार्श्व में वोल्टता आरोपित होती है तो उस वोल्टता के अनुसार शरीर में धारा का मान प्रवाहित होता है। चूंकि मनुष्य के शरीर की चमडी (Skin) के कारण प्रतिरोध का मान निर्भर करता है, सुखी अवस्था में 120000 से 500000 के बीच हो सकता है, जबकि गीले शरीर का 6000 या उससे भी कम हो सकता है तथा इसके साथ साथ शरीर के भाग का क्षेत्र यदि उपकरण के साथ सम्पर्क में अधिक है, तब भी शरीर में अधिक धारा प्रवाहित होगी।

शरीर में 20 mA से 40mA धारा गुजरने पर घातक झटका लगता है और साँस लेने में कठिनाई हो जाती है। 40mA से 100 mA धारा गुजरने पर मनुष्य की उसी समय मृत्यु हो जाती है और 200 mA तथा अधिक धारा पर मृत्यु के साथ ही शरीर भयंकर रुप से झुलस जाता है।

यदि उपकरण अच्छी तरह भू-सम्पर्कित होगा तो उपकरण को छूने से तीव्र झटका नहीं लगेगा, क्योंकि पृथ्वी का प्रतिरोध शून्य होता है जबकि मनुष्य के शरीर का प्रतिरोध किसी भी अवस्था में 1000 52 से कम नहीं होता। जिसके कारण धारा लघु रास्ते अर्थात् भू-सम्पर्कित में से होकर पृथ्वी में चली जाती है और मनुष्य सुरक्षित हो जाता है। इसके साथ ही पृथ्वी का न्यून प्रतिरोध होने के कारण परिपथ में उच्च धारा बहेगी जिसके कारण परिपथ में लगा फ्यूज तार पिघल जाता है। यदि MCB लगा है तो वह ट्रिप कर जाता है और परिपथ का विद्युत प्रदाय से सम्पर्क कट जाता है। 

(2) आग से सुरक्षा (Safety From Fire) :- यदि परिपथ में किसी कारण लघु परिपथ होता है और इस प्रकार की परिस्थिती से बचने के लिए कोई आटोमैटिक प्रबन्ध न किया गया हो तो विद्युत अवरोधी में आग लग सकती है और ऐसे समय यदि उस स्थान पर कागज इत्यादि आग पकड़ने वाली वस्तुएँ रखी हो तो पूरे घर में लाग फैलने का खतरा बढ़ जाता है। परन्तु उचित भू-सम्पर्कन होने से सम्पूर्ण लघु पथ धारा पृथ्वी में चली जाती है और आग लगने की सम्भावना नहीं रहती।

(3) भू-सम्पर्कित तार का न्युट्रल तार के रूप में उपयोग :- कभी कभी न्यूट्रल तार का सम्बन्ध विद्युत प्रदाय परिपथ से हट जाता है। ऐसे आपात काल में भू-सम्पर्कन से काम लिया जा सकता है, परन्तु सामान्य कार्य में ऐसा नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से विद्युत उपकरणों के आवरण (Body) संजीवित हो जाते है और विद्युत झटका लग सकता है। 

भू-सम्पर्कन की विधियां (Methods of earthing ) :- भू-सम्पर्कन की निम्नलिखित विधियां हैं :-

(1) पाइप - भू सम्पर्कन (Pipe Earthing) :- भू-सम्पर्कन की इस विधि में I SI मानक के अनुसार 38.1 mm व्यास का पाईप जिसकी लम्बाई 2.5 मीटर हो यदि भूमि पथरीली हो तो यह लम्बाई अधिक भी ले सकते हैं। वैसे पाइप की लम्बाई किसी स्थान विशेष पर पाई जाने वाली नमी पर निर्भर करती है। पाईप सदैव उद्रग (Vertical) और नमी में रहना चाहिए।


गडढे में अर्थ इलैक्ट्रोड उतारकर इसके चारों ओर 15 सें.मी. मोटी नमक व कोयले की तहें एक के ऊपर एक के हिसाब से डालें। कोयला और नमक दोनो ही भूमि को नरम बनाए रखते हैं और नमी भी बनाये रखते हैं, जिससे भूमि का प्रतिरोध बना रहता है। 38-1mm वाले पाईप इलैक्ट्रोड पर पाईप रिड्यूसर लगाकर 19 mm पाईप जोडा जाता है और यह पाईप जमीन की सतह तक लाकर इसके ऊपर चेकनट व वाशर के बीच भू सम्पर्कन तार जोडीजाती है। इसी उपरी हिस्से पर एक जालीदार कीप लगाई जाती है ताकि गर्मी के दिनों में इसमें पानी डाला जा सके। यदि भू सम्पर्कन इलैक्ट्रोड ताम्र का है तो तार भी ताम्र की हो। यदि जी-आई० का है तो तार व नट बोल्ट वाशर इत्यादि सभी जी- आई० के ही होने चाहिए।

प्लेट भू- सम्पर्कन (Plate Earthing) :- यह विधि आधुनिक और उत्तम है। इसमें तांबे की प्लेट जिसका साईज 60cm * 60 cm x 3.18 mm and G-1 की प्लेट का साईज 60cm x 60 cm x 6.3 लिया जाता है ।

चित्र 5.2 अनुसार प्लेट को उदग्र लगभग 3 मीटर जमीन के अन्दर गाड दिया जाता है और इसके चारों और 15 सेमी मोटी कोयले तथा नमक की एक के बाद एक तहे लगाई जाती है। इसमें कोयला तथा नमक प्लेट के लिए नमी बनाकर रखते हैं, जिसके कारण भू सम्पर्क का प्रतिरोध कम होता है। इस प्लेट से भू-सम्पर्क तार नट बोल्ट से या वैल्ड करके उपर ले जाते हैं और वायरिंग अधिष्ठापन में उपकरणों से संयोजित करते हैं। प्लेट से अर्थ तार को जोडकर उसे एक 12.7 एमएम व्यास के जी.आई. पाइप के द्वारा बाहर लाया जाता है और दूसरा 19 mm का CI. पाइप को ऊपर जमीन की सतह पर बने चैम्बर में लाया जाता है। चैम्बर में 19 mm पाइप के ऊपर जाली लगी कीप लगाते है। इस कीप का उपयोग गर्मियों में पानी डालने के लिए किया जाता है। भू सम्पर्कन के प्रतिरोध को कम रखने के लिए निम्नलिखित उपाय किये जाते हैं.


1. भू इलैक्ट्रोड डालने के बाद भूमि में पर्याप्त कोयला और नमक डालना चाहिए।

2. बार बार भू गडढे में पानी डालने से भू सम्पर्कन का प्रतिरोध कम रखा जा सकता है।

3. यदि कई भू-सम्पर्कन की हुई है तो उनको समानान्तर में जोड़कर कुल भू सम्पर्कन प्रतिरोध कम कर सकते है।

4. जी-आई० भू सम्पर्कन का अधिकतम प्रतिरोध 3 ओह्म से अधिक नहीं होना चाहिए और ताम्र द्वारा बनी भू सम्पर्कन का प्रतिरोध एक ओह अधिक नहीं होना चाहिए।

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