संम्प्रेषण (Communication)
संम्प्रेषण (Communication) :- दो या दो से अधिक व्यक्तियों 1 अपने संदेशो, भावनाओं, तथ्यों तथा विचारों को परस्पर विनिमयकरने को सम्प्रेषण कहा जाता है।
संम्प्रेषण का अर्थ (Meaning of communication)- सम्प्रेषण लेटिन शब्द कमम्युनिस (Communis) से लिया गया है जिसका अर्थ - सामान्य "(Common) है।
*कुछ विद्वानो ने संम्प्रेषण का आशय मात्र सूचनाएँ देने से लगाया
*सरल भाषा में कहा जा सकता है कि "संम्प्रेषण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक सूचना एवं समझ के हस्तान्तरण की प्रक्रिया है।” * वेबस्टर शब्दकोश के अनुसार- संम्प्रेषण शब्दों, पत्रों अथवा सन्देशों द्वारा समागम, विचारों का विनिमय है।
*उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि संम्प्रेषण एक सतत एवं सर्वव्यापक प्रक्रिया है जिसमें दो या अधिक व्यक्ति अपने सन्देशों, भावनाओं, सम्मतियों, तथ्यों तथा विचारों आदि का पारस्परिक विनिमय करते है। इसका प्रमुख उद्देश्य समझ पैदा करना है।
संम्प्रेषण की आवश्यकता व महत्व (Need & Importance of communication)-सम्प्रेषण संगठन के विकास व संवर्धन हेतु अत्यन्त आवश्यक है। संप्रेषण से नियोजन, नियन्त्रण, निर्देशन मे सहयोग मिलता है।
1. प्रबंध कार्यों की आधारशिला (Foundation ofmanagerial functions)- पीटर एफ. ड्रकर के अनुसार, “अच्छा संप्रेषण सुदृढ़ प्रबन्ध की आधारशिला है। *(Good communication is the foundation for sound management.) प्रबन्ध के प्रमुख में संम्प्रेषण का महत्त्व निम्न प्रकार है-
(i) प्रबन्ध नियोजन में सहायता होता है। प्रबन्धक योजना बनाते प्राप्त कर सकता है। इससे एक अच्छी योजना बनाया जाना सम्भव होता समय कर्मचारियों एवं विभिन्न संबन्धित पक्षकारों से सुझाव एवं रायहै। इसके अलावा प्रबन्धक सम्प्रेषण के द्वारा योजनाओं की जानकारी अधीनस्थों को देता है एवं उसको क्रियान्वित करवाता है। संम्प्रेषण के माध्यम से क्या करना है, कैसे करना है, कब करना है, किसे करना है आदि का निर्धारण सरलता से किया जा सकता है। इस तरह नियोजन करने और उसके क्रियान्वयन करने में संम्प्रेषण का महत्त्वपूर्ण स्थान है
(ii) संगठन में संम्प्रेषण का महत्त्वपूर्ण स्थान है। यह व्यक्तियों एवं विभागों को उनके अधिकार, कर्तव्य एवं उत्तरदायित्व का ज्ञान कराता है। संम्प्रेषण की सहायता से ही अधिकारों का प्रत्यायोजन सम्भव हो पाता है। टैरी के अनुसार, "संम्प्रेषण ही वह माध्यम है जिसके द्वारा अधिकार प्रत्यायोजन की क्रिया पूर्ण होती है। *
(iii) किसी भी संस्था में प्रभावी समन्वय के लिए संम्प्रेषण का होना आवश्यक है। उच्च स्तरीय प्रबन्ध अपनी नीतियाँ एवं कार्यक्रम निम्न स्तरीय प्रबन्ध को सम्प्रेषित करता है और बदले में उनसे सुझाव, प्रगति रिर्पाट प्राप्त करता है। इस तरह विभन्न विभागों के कार्य निष्पादन की जानकारी प्रबन्धक को मिलती रहती है। मेरी कुशिंग नाइल्स के अनुसार, "समन्वय के लिए अच्छा संम्प्रेषण आवश्यक है। यह ऊपर की ओर, नीचे की ओर, दांये-बांये दोनों ओर सभी स्तरों पर नीतियों को प्रेषित करने, व्याख्या करने और अपनाने के लिए सूचनाओं और ज्ञान को प्राप्त करने, अच्छे मनोबल एवं आपसी समझ के लिए आवश्यक है। "
(iv) संम्प्रेषण नियन्त्रण में सहायक होता है। संम्प्रेषण द्वारा अधीनस्थों के कार्यों की जानकारी प्रबन्धक को दी जाती है और अधीनस्थों का कार्य लक्ष्यों के अनुरूप नहीं होने पर प्रबन्धक अविलम्ब सुधारात्मक प्रयास करता है।
(v) संम्प्रेषण के आधार पर कर्मचारियों को अभिप्रेरित किया जाता है एवं उनका सहयोग प्राप्त किया जाता है। इस हेतु प्रबन्धक विभिन्न वित्तीय एवं अवित्तीय प्रेरणाओं का उपयोग करता है।
2. व्यवसाय का कुशल संचालन (Efficient functioning of business)-व्यवसाय के कुशल संचालन के लिए आवश्यक है
व्यवसाय की विभिन्न गतिविधियों एवं विभागों, क्रय विक्रय, उत्पादन, वित, विज्ञापन में प्रभावी सम्प्रेषण हो। सम्प्रेषण के द्वारा इन विभागों की गतिविधियों में समन्वय स्थापित होता है। संम्प्रेषण के मध्यम से व्यवसाय के बाह्य घटकों-ग्राहक, पूर्तिकर्त्ता, सरकार, समाज की आवयकताओं की जानकारी प्राप्त की जाती हैं एवं उन्हें पूरा किया जाता है।
3. उत्पादकता में वृद्धि (Increases productitvity)-सम्प्रेषण की सहायता से कर्मचारियों को उनके कार्यों एवं अधिकारों से अवगत कराया जाता है। कर्मचारियों को प्रबन्ध में सहभागी बनाया जाता है। कर्मचारियों में यह भावना उत्पन्न की जाती है कि जिस संस्था में वे कार्य करते हैं वह संस्था उनके स्वयं के प्रयत्नों का प्रतिफल है। इससे कर्मचारियों की कार्य निष्पादन क्षमता बढ़ती है।
4. प्रशिक्षण एवं विकास का महत्त्वपूर्ण साधन (Important means of training and development)- आज प्रतिदिन प्रौधोगिकी में परिवर्तन हो रहे हैं। अत: कर्मचारियों को कार्यों, नवीन तकनीकों एवं पद्धतियों की समय-समय पर जानकारी देना आवश्यक होता है। कर्मचारियों को प्रशिक्षित करने एवं उनकी योग्यता का विकास करने में संम्प्रेषण की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
5. जन सम्पर्क (Public relations)- व्यवसाय के दो मुख्य पक्ष होते है- आंतिरक पक्ष तथा बाह्यपक्ष। आंतरिक पक्ष में नियोक्ता, प्रबन्धक, कर्मचारी सम्मिलित होते हैं तथा बाह्य पक्ष में उपभोक्ता, पूर्तिकत्ता, ऋणदाता, सरकार, तथा समाज आदि सम्मिलित होते हैं व्यवसाय को सभी बाह्य पक्षकारों से अच्छे सम्बन्ध रखने आवश्यक हैं। ताकि उसकी अच्छी छवि एवं प्रतिष्ठा बन सके। व्यावसायिक संस्था सम्प्रेषण की सहायता से इन सभी के साथ अच्छे सम्बन्ध स्थापित कर पाती है।
6. कर्मचारियों के मनोबल में वृद्धि (Increase in employees morale) - संम्प्रेषण के माध्यम से अधिकारी कर्मचारियों की शिकायतें सुनते हैं, उनसे विचार-विमर्श करते है, संस्था की प्रगति एवं कार्यक्रमों से उन्हें अवगत कराते हैं। इस तरह अधिकारियों के मध्य लगातार संवाद होने से तथा समस्याओं का निदान होने से कर्मचारियों के मनो बल में वृद्धि होती है।
7. अच्छे औद्योगिक सम्बन्ध (Good industrial relations)- संम्प्रेषण से अच्छे औद्योगिक सम्बन्धो का निर्माण होता है। प्रभावी संम्प्रेषण के नहीं होने से नियोक्ता एवं श्रम संघों के मध्य भ्रांतियाँ एवं अविश्वास उत्पन्न होता है। श्रम संघो के साथ निरन्तर विचार-विमर्श करने से उनकी यथोचित माँगों कां एवं दिए आश्वासनों को पूरा करने से अच्छे सम्बन्ध बनते हैं। साथ ही संम्प्रेषण के माध्यम से श्रम संघों को कम्पनी के दृष्टिकोण, नीतियों से अवगत कराया जाता है।
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