विद्युत एवं इसके मूल सिद्धांत
विद्युत एवं इसके मूल सिद्धांत (Electricity and its Fundamental Laws)
परिचय (Introduction)
उष्मा एवं प्रकाश की तरह विद्युत भी एक प्रकार की ऊर्जा है जो दिखाई नहीं देती परन्तु इसकी उपस्थिति इसके प्रभावों से ज्ञात हो जाती है। विद्युत हमेशा रही है और रहेगी इसे नष्ट नहीं किया जा सकता न उत्पन्न किया जा सकता है केवल विभिन्न विधियों से इसका रूपान्तरण करके इसका उपयोग किया जाता है।
विद्युत के प्रकार (Types of Electricity)
विद्युत दो प्रकार की है।
(i) स्थिर विद्युत (Static Electricity)
(ii) गतिज विद्युत (Dynamic Electricity)
स्थिर विद्युत (Static Electricity)
वैज्ञानिकों के शोध से ज्ञात है कि धातुओं में इलैक्ट्रोन छोड़ने व अधातुओं में इलैक्ट्रोन ग्रहण करने की प्रवृत्ति होती है। अतः यदि कांच को रेशम से रगड़ने पर कांच की छड़ के स्वतन्त्र इलैक्ट्रोन रेशम पर चले जाएँगे तो कांच पर इलैक्ट्रोन कम होने व प्रोटोन अधिक होने से यह छड़ धन आवेशित और रेशम ऋण आवेशित हो जाएगी। इसके विपरीत यदि एबोनाइट की छड़ को फलालेन से रगडा जाए तो एबोनाइट की छड़ ऋण आवेशित हो जाएगी और यह ऋण आवेश एबोनाइट की छड़ में तब तक रहेगा जब तक कि इलैक्ट्रोनों को किसी बाहरी साधन से हटा न दिया जाए। इस प्रकार घर्षण द्वारा उत्पन्न की हुई विद्युत को स्थिर विद्युत Static Electricity कहते हैं। इस प्रकार उत्पन्न विद्युत को बहुत अधिक मात्रा में उत्पन्न नहीं किया जा सकता परन्तु इस प्रभाव से कई प्रकार के उपयन्त्र बनाए जाते हैं।
गतिज विद्युत (Dynamic Electricity)
इसे धारा विद्युत भी कहते हैं और इसे एक स्थान से दूसरे स्थान अर्थात् उत्पादन केन्द्र से सुदूर उपभोक्ता केन्द्र तक तारों व केबलों द्वारा आसानी से ले जाया जा सकता है। यह अधिक मात्रा में उत्पन्न की जा सकती है। इसे उत्पन्न करने के लिए निम्नलिखित प्रभावों का उपयोग किया जा सकता है :-
(1) विद्युत चुम्बकीय प्रेरण द्वारा (Electro Magnetic Induction)
यह विद्युत उत्पन्न करने की सबसे महत्वपूर्ण विधि है और यही एक ऐसी विधि है जिससे सारे व्यावहारिक तथा व्यापारिक कार्यों के लिए, आवश्यकतानुसार विद्युत शक्ति उत्पन्न की जा सकती है।
(2) रासायनिक क्रिया द्वारा (By Chemical Action)
प्राथमिक सेलों में रासायनिक क्रिया द्वारा विद्युत ऊर्जा उत्पन्न की जा सकती है, परन्तु इसे बहुत अधिक मात्रा में उत्पन्न नहीं किया जा सकता है।
(3) उष्मा के प्रभाव द्वारा (By Heating Effect)
इस विधि में दो विभिन्न पदार्थों जैसे बिस्मथ - एन्टीमनी, ताम्र-लोह, ताम्र-कान्सटेन्टन आदि के सन्धि बिन्दुओं को गर्म करने से बहुत कम विद्युत वाहक बल उत्पन्न होता है। इस प्रकार उत्पन्न विद्युत का उपयोग प्रायः ताप विद्युत उतापमापी (Thermo Electric Pyrometer) में प्रयोग करते हैं। अन्य व्यावहारिक कार्यों के लिए यह विधि उपयोगी नहीं है।
(4) प्रकाश विद्युत प्रभाव से (By Photo Electric Effect)
इस विधि में प्रकाश की किरणें एक धातु जैसे जस्ते या सीजीयम की सतह पर आपतित की जाती हैं तो धातु में से इलेक्ट्रान निकलते हैं जिसके फलस्वरूप परिपथ में क्षीण विद्युत धारा बहने लगती है। इस विधि का उपयोग सौर ऊर्जा से विद्युत पैदा करने में किया जा रहा है परन्तु यह भी बहुत अधिक मात्रा में पैदा नहीं की जा सकी है।
इलैक्ट्रोनिक सिॠान्त (Electronic Theory)
आधुनिक इलैक्ट्रान सिॠान्त को ही इलैक्ट्रानिक थ्योरी कहते हैं। कल्पना करें कि सारा ब्रह्ममाण्ड पदार्थ व ऊर्जा से बना है। पदार्थ वह है जो स्थान घेरता है और भार रखता है और ठोस, तरल व गैस के रूप में हो सकता है। पदार्थ छोटे छोटे महीन कणों से मिलकर बना है, इन कणों में पदार्थ के सभी गुण होते हैं और इन्हीं कणों को अणु Molecules कहते हैं। यदि अणु को और छोटे कणों में विभाजित किया जाए तो ये विभाजित कण परमाणु कहलाते हैं। परमाणु फिर इलैक्ट्रोन, प्रोटोन व न्यूट्रोन से बना होता है। ये इलैक्ट्रोन, प्रोटोन तथा न्यूट्रान एक विशेष संरचना में व्यवस्थित रहते हैं, जिसे परमाणु संरचना कहते हैं।
परमाणु संरचना (Atomic Structure)
नाभि (Nucleus)
परमाणु के केन्द्रीय भाग को नाभि कहते हैं। इसमें प्रोटोन व न्यूट्रोन
स्थित रहते हैं।
प्रोटोन (Protons)
ये कण धनावेशित होते हैं और संख्या में इलैक्ट्रोन के बराबर होते हैं। यह इलैक्ट्रोन से 1840 गुणा भारी होते हैं।
न्यूट्रोन (Neutrons)
ये कण उदासीन होते हैं इन पर कोई आवेश नहीं होता ।
इलैक्ट्रोन (Electrons)
ये भार में बहुत हल्के होते हैं और इन पर ऋण आवेश रहता है। एक
इलैक्ट्रोन की संहति हाइड्रोजन परमाणु की संहति की 1 वीं होती है। 1840
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