बेसिक इलैक्ट्रोनिक्स

 

बेसिक इलैक्ट्रोनिक्स Basic Electronics

परिचय- आधुनिक युग में विज्ञान तथा इंजीनियरिंग के क्षेत्र में क्रान्तिकारी परिवर्तन हुआ है। इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग के विशेष योगदान के कारण विद्युत मशीनों का परिचालन भी आसान हो गया है। घरेलू व व्यावसायिक उपकरणों में इलेक्ट्रॉनिक्स का योगदान सर्वविदित है परन्तु एक दशक पहले तक विद्युत इंजीनियरिंग में तीन फेज प्रत्यावर्ती मोटरों का परिचालन अधिकतर वैद्युतीय रूप से होता है। परन्तु आजकल AC ड्राइव का उपयोग आम हो गया है। अतः एक इलैक्ट्रिशियन को इलेक्ट्रॉनिक्स का ज्ञान होना अनिवार्य है।

इलेक्ट्रॉनिक्स (Electronics)-चूँकि इलेक्ट्रॉनिक्स शाखा मूल रूप से विद्युत इंजीनियरिंग की एक शाखा है परन्तु आधुनिक युग में इसके विस्तार के कारण यह अलग से इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग शाखा कहलाने लगी है। अतः इलेक्ट्रॉनिक्स विज्ञान की वह शाखा है जिसमें निर्वात (Vacuum) गैस या अर्द्धचालकों में इलेक्ट्रॉन प्रवाह का अध्ययन किया जाता है।

इलेक्ट्रॉनिक युक्तियों के गुण (Merits of Electronic Devices)-इलेक्ट्रॉनिक युक्तियों के निम्नलिखित गुण होते हैं- 

1.इनके द्वारा विद्युत धारा को प्रकाश रूपी प्रतिबिम्ब के रूप में 1…कम्पनदर्शी (oscilloscope) द्वारा देखा जा सकता है।

2.ये आवृत्ति की बड़ी सीमा अर्थात् 1012 हर्टज या उससे अधिक तक के लिए प्रयुक्त की जा सकती है।

3.येबहुत कम ऊर्जा का क्षय करती है।

4.ये एक ही दिशा में कार्य करती है।

5. ये बहुत शीघ्रता से कार्य करती है।

6.टूट-फूट कम है अर्थात् आयु अधिक होती है। 

परमाणु संरचना (Atomic Structure)-चूँकि प्रत्येक पदार्थ जो तत्व या यौगिक हो सकता है परमाणु (Atom) से बना होता है और परमाणु फिर सूक्ष्म कणों में विभाजित होता है, ये निम्नलिखित तीन प्रकार के कण हैं-

1.प्रोटोन (Proton) इस पर धन आवेश होता है

2.। इलेक्ट्रॉन (Electron) इस पर ऋण आवेश होता है।

3. न्यूट्रान (Neutron) इस पर कोई आवेश नहीं होता है। ये तीनों कण सौर मण्डल की तरह व्यवस्थित रहते हैं जिस प्रकार सौर मण्डल में सूर्य के चारों ओर ग्रह चक्कर लगाते हैं उसी प्रकार प्रोटोन और न्यूट्रॉन जो सूर्य की तरह एक नाभिक (Nuclear) में बँधे रहते हैं। इस नाभिक पर परमाणु का लगभग सारा द्रव्यमान तथा सारा धन आवेश केन्द्रित रहता है। नाभिक का व्यास लगभग 10-15 मीटर के लगभग होता है। इस नाभिक के चारों ओर इलेक्ट्रॉन चक्कर लगाते रहते हैं।

नाभिक के चारों ओर सूक्ष्म द्रव्यमान वाले इलेक्ट्रॉन कण जिन पर 1.6x10-19 कूलम्ब ऋण आवेश रहता है दीर्घवृतीय (Elliptical) कक्षाओं में चक्कर लगाते रहते हैं। इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान बहुत कम 9.1×10-31 किलोग्राम के लगभग होता है। इलेक्ट्रॉन पर ऋण आवेश प्रोटान पर धन आवेश के तुल्य होता है और पूरे परमाणु का औसत व्यास लगभग 10-10 मीटर होता है।

किसी परमाणु के नाभिक में प्रोटोनों की संख्या इसकी कक्षाओं में घूम रहे इलेक्ट्रॉनों की संख्या के बराबर होती है।

परमाणु की नाभिक में प्रोटोनों की संख्या या कक्षाओं में इलेक्ट्रॉनों की संख्या को उस तत्व की परमाणु संख्या (Atomic Number) कहते हैं

नाभिक के द्रव्यमान को परमाणु भार (Atomic Weight) कहते

परमाणु के इलेक्ट्रॉनों की विभिन्न कक्षाएँ-चूँकि प्रत्येक पदार्थ के परमाणुओं में प्रोटोन न्यूट्रॉन और इलेक्ट्रॉन की संख्या अलग-अलग होती है और उनकी नाभिक के चारों ओर घूमने वाले इलेक्ट्रॉन भी विभिन्न कक्षाओं में घूमते हैं। समर फिल्ड (Summer field) के सूत्र अनुसार किसी कक्षा में अधिकतम इलेक्ट्रॉनों की संख्या 2n2 होती है। इस सूत्र में n सम्बन्धित कक्षा की क्रम संख्या है।

अतः सूत्र अनुसार प्रथम कक्षा में इलेक्ट्रॉन की संख्या = 2.12 = 21 प्रथम कक्षा का नाम K होता है।

द्वितीय कक्षा में 2.22 - 8 इलेक्ट्रॉन हो सकते हैं, इसका अर्थात् जो न पूर्णत: चालक हैं और न पूर्णतः विद्युत रोधी । हैं वे पदार्थ अर्द्ध चालक कहलाते हैं। इन पदार्थों में जर्मेनियम, सिलिकॉन औरनाम L होता है। इसी प्रकार तीसरी कक्षा में 18, चौथी में 32 इलेक्ट्रॉन हो सकते हैं और इन्हें M तथा N कक्षा से दर्शाया जाता है।



तत्व के परमाणु की सबसे बाहर वाली कक्षा में इलेक्ट्रॉन की संख्या तत्व की संयोजकता (Valency) कहलाती है। इस सबसे बाहर वाली कक्षा में अधिकतम इलेक्ट्रॉन की संख्या 8 हो सकती है। चित्र 17.1 में हाइड्रोजन, हीलियम और आर्गन परमाणु की संरचना दिखाई गई है।

मुक्त इलेक्ट्रॉन (Free Electrons) - चूँकि परमाणु की प्रत्येक कक्षा में घूमने वाले इलेक्ट्रॉन नाभिक के आकर्षण बल के कारण नाभिक से बँधे रहते हैं क्योंकि नाभिक में प्रोटोन के कारण धन आवेश होता है। नाभिक के सबसे पास वाली कक्षा K के इलेक्ट्रॉन का आकर्षण बल सबसे अधिक और अन्तिम कक्षा वाले इलेक्ट्रॉन पर सबसे कम आकर्षण बल आरोपित होता है, इन बाहर वाली कक्षा के इलेक्ट्रॉन अलग होकर इधर-उधर घूमते हैं उन्हें मुक्त इलेक्ट्रॉन कहते हैं।

चालकों में मुक्त इलेक्ट्रॉन अधिक, कुचालकों में नगण्य तथा अर्द्ध चालकों में कम संख्या में होते हैं।

इलेक्ट्रॉन उत्सर्जन (Electron Emission)- विशेष परिस्थितियों में मुक्त इलेक्ट्रॉनों को चालक सतह से बाहर निकालने की प्रक्रिया इलेक्ट्रॉन उत्सर्जन कहलाती है। यह कार्य निम्नलिखित विधियों से सम्पन्न हो सकता है-

1.तापीय उत्सर्जन (Thermionic Emission)

2.प्रकाश विद्युत उत्सर्जन (Photo Electric Emission) 

3.क्षेत्र उत्सर्जन (Field Emission)

4.द्वितीयक उत्सर्जन (Secondary Emission)

इन विधियों का प्रयोग प्रायः वाल्वों में किया जाता था। अर्द्ध चालक (Semi Conductors)-जिन ठोस पदार्थों का विशिष्ट प्रतिरोध चालकों तथा विद्युत रोधियों के बीच का होता है।

आवर्त सारणी में से कुछ विशेष पदार्थ

तृतीय ग्रुप.                   चतुर्थ ग्रुप.                      पंचम ग्रुप

बोरोन B (5).                कार्बन C (6).             फास्फोरस P )

एल्यूमीनियम Al.      (13) सिलीकॉन Si (14) आर्सेनिक As (33)

गैलियम Ga (31).       जरमेनियम Ge (32)

अर्द्ध चालकों में ऊर्जा स्तर (Energy Level in Semiconductor) चूँकि परमाणु में इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों और स्थाई कक्षाओं में घूमते हैं। एक निश्चित कक्षा में घूमने वाले इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा भी निश्चित होती है। नाभिक के समीप वाली कक्षा में घूमते इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा न्यूनतम तथा सबसे दूर वाली कक्षा में घूमने वाले इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा अधिकतम होती है और सबसे बाहर वाली कक्षा को संयोजी कक्षा (Valance orbit) कहते हैं।

कम त्रिज्या वाली कक्षा से अधिक त्रिज्या वाली कक्षा में इलेक्ट्रॉनों को स्थानान्तरित करने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता पड़ती है क्योंकि कम त्रिज्या से अधिक त्रिज्या वाली कक्षा में इलेक्ट्रॉन को स्थानान्तरित करने के लिए नाभिक के आकर्षणबल के विरुद्ध कार्य करना पड़ता है यह बल कम त्रिज्या से अधिक त्रिज्या वाली कक्षा में इलेक्ट्रॉन स्थानान्तरित करने के लिए अधिक लगता है।

चित्र 17.2 में एक परमाणु के ऊर्जा स्तरों को दिखाया गया है। जब बाहर से उष्मा, प्रकाश आदि के रूप में ऊर्जा परमाणु को • ऊर्जा की कक्षा में स्थानान्तरित हो जाता है। दी जाती है तो इलेक्ट्रॉन उत्तेजित होकर कम ऊर्जा की कक्षा से अधिक

किसी भी अर्द्धचालक में इलेक्ट्रॉन की कक्षा पास वाले परमाणु के आवेश से प्रभावित होने के कारण उस इलेक्ट्रॉन के चारों ओर आवेश का प्रभाव अलग-अलग होता है इसलिए किसी विशेष कक्षा मेंप्रत्येक 

इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा में थोड़ा-थोड़ा अन्तर होता है। चूँकि किसी पदार्थ के क्रिस्टल में लाखों परमाणु होते हैं और माना प्रत्येक परमाणु की प्रथम कक्षा ही प्रभावित हो रही है तो इस कक्षा के इलेक्ट्रॉन एक अलग ऊर्जा स्तर या एक बैण्ड का रूप धारण कर लेते हैं जो प्रथम ऊर्जा स्तर (Energy Level) के संगत प्रथम बैण्ड कहलाता है और इसी प्रकार द्वितीय, तृतीय या संयोजी कक्षा में इलेक्ट्रॉन भी द्वितीय, दिखाया गया है। तृतीय या संयोजी बैण्ड बना लेते हैं। चित्र 7.2 (b) में इन स्तरों को

इन्ट्रिन्जिक तथा एक्सट्रिन्जिक अर्द्धचालक (Instrinsic and Extrinsic Semi-Conductor)-प्राकृतिक रूप में मिलने वाले शुद्ध जर्मेनियम और सिलिकॉन अर्द्धचालक इन्ट्रिन्जिक अर्द्ध चालक कहलाते हैं। जब इन अर्द्धचालकों में पाँचवें व तीसरे ग्रुप से अशुद्धि मिला देते हैं तो ये पदार्थ एक्सट्रिन्जिक अर्द्धचालक कहलाते हैं।

शुद्ध जर्मेनियम अर्द्धचालक की संरचना- प्राकृतिक रूप में प्राप्त शुद्ध अर्द्धचालक जर्मेनियम की संरचना चित्र 173 में दिखाई गई है। यह आवर्त सारणी के चतुर्थ ग्रुप में आता है और इसकी परमाणु संख्या 32 होती है।



 ये संयोजी इलेक्ट्रॉन परम शून्य ताप (0°K) पर अपने पड़ौसी परमाणु के संयोजी इलेक्ट्रॉनों के साथ मिलकर सहसहयोगी बन्ध (Covalent Bond) बना लेते हैं। जैसा कि चित्र 173 में दिखाया गया है। प्रत्येक जर्मेनियम परमाणु को 8 इलेक्ट्रॉन घेर लेते हैं ये आठों इलेक्ट्रॉन संयोजी इलेक्ट्रॉन होते हैं और इस प्रकार मुक्त इलेक्ट्रॉन न होने के कारण 0°K पर यह इन्ट्रिन्जिक अर्द्धचालक एक विद्युत रोधी पदार्थ की तरह ही व्यवहार करता है।


शुद्ध अर्द्धचालकों में चालन (Conduction in Pure Semi- Conductor)- हम जानते हैं कि अर्द्ध चालकों में संयोजी बैण्ड में इलेक्ट्रॉन के चले जाने से जो स्थान खाली हो जाता है वह विवर (hole) कहलाता है। इस प्रकार दो प्रकार के आवेश वाहक अर्द्ध चालक में उपस्थित रहते हैं एक विवर जो धन आवेशिक होता है दूसरा इलेक्ट्रॉन जो ऋण आवेशित होता है।



इसमें 32 इलेक्ट्रॉन विभिन्न कक्षाओं में चक्कर लगाते हैं सबसे बाहर वाली कक्षा में शेष चार इलेक्ट्रॉन होते हैं जो संयोजी इलेक्ट्रॉन

इस प्रकार के अर्द्ध चालकों के सिरों पर जब बैट्री लगाई जाती है तो मुक्त इलेक्ट्रॉन बैट्री के धनात्मक सिरे की तरफ तथा विवर बैट्री के ॠण सिरे की ओर आकर्षित होते हैं। अतः अर्द्धचालक में कुल धारा I दोनों प्रकार की धाराओं Ie इलेक्ट्रॉन धारा तथा In होल्स धारा का योग होती है। चूँकि यह परिणामी धारा I बाह्य विभवान्तर के कारण प्रवाहित हो रही है। अतः इस परिणामी धारा को अपवाह धारा (Drift Current) भी कहते हैं।

N-टाइप अर्द्धचालक (N-type Semiconductor)-यदि जर्मेनियम अर्द्धचालक में पाँचवें ग्रुप का कोई तत्व जैसे आर्सेनिक, एन्टीमनी या फास्फोरस को अशुद्धि के रूप में मिला दिया जाता है तो अशुद्धि में एक इलेक्ट्रॉन अधिक होने के कारण अर्द्धचालक की विद्युत चालकता बढ़ जाती है क्योंकि इस प्रक्रिया से मुक्त इलेक्ट्रॉनों की संख्या बढ़ जाती है। चित्र 17.5 में इस प्रकार के अर्द्धचालक की संरचना दिखाई गई है।


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